Saturday, July 21, 2018

सिकंदर के बारे में जानिए रोचक बात


सिकन्दर महान


आज हम आपको एक ऐसे विश्वविजेता के जीवन के बारे में 8 सच्चाईयां बताएंगे जो आपकी नज़र में इसके महान होने के भ्रम को तोड़ देगीं।

1.वह राजा बनने के लिए अपने भाइयों को मार दिया था
सिकंदर का जन्म 356 ईसवी पूर्व में ग्रीक(यूनान) के मकदूनिया(मेसोडोनिया) में हुआ था। उसका पिता फिलिप मकदूनिया का राजा था जिसने कई शादियां की थी।   
336 ईसवी पूर्व में सिकंदर जब 19-20 साल का था तो उसके पिता फिलिप की हत्या कर दी गई। ऐसी भी कहा जाता है कि सिकंदर की मां ओलंपिया ने ही जह़र देकर अपने पति की हत्या करवाई थी।
अपने पिता की मृत्यु के पश्चात सिकंदर ने राजगद्दी पाने के लिए अपने सौतेले और चचेरे भाईयों का कत्ल कर दिया और मकदूनिया का राजा बन गया।
2. विश्वविजेता बनने का सपना उसे अरस्तू ने दिखाया था
सिकंदर का गूरू अरस्तू था जो एक बहुत ही प्रसिद्ध और महान दार्शनिक था। अरस्तू के महत्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज पूरी दुनिया में जहां – जहां भी दर्शनशास्त्र, गणित, विज्ञान और मनोविज्ञान पढ़ाया जाता है उसमें कहीं ना कहीं अरस्तू के विचारों जा वैज्ञानिक अनुभवों का उल्लेख जरूर होता है।
सिकंदर जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति को निखारने का काम अरस्तू ने ही किया। कई इतिहासकार मानते हैं कि वह अरस्तू ही था जिसने सिकंदर के मन में पूरी दुनिया जीतने का सपना जगाया।

इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिकंदर के विजयी अभियान के दौरान अरस्तू का भतीजा कलास्थनीज़ भी एक सेनापति के रूप में उसके साथ गया था।
3. सिकंदर का युद्ध कौशल
कोई राजा ऐसे ही महान नहीं बनता उसके अपनी योग्यता को निखारना होता है। यह सिकंदर की योग्यता का ही परिणाम था कि उसकी छोटी सी सेना बड़ी – बड़ी सेनाओ को मात दे दिया करती थी। सिकंदर की युद्ध रणनीतियों को आज भी युरोप की किताबों में पढ़ाया जाता है।

सिकंदर के पत्थर और आग के गोले फेंकने वाले गुलेलनुमा बड़े- बड़े हथियार और उसके सैनिकों की लंबी – लंबी ढ़ालें युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाती थी।

कई ऐसे मौकों पर जब सिकंदर की सेना युद्ध में कमज़ोर पड़ती दिखती तो सिकंदर खुद आगे होकर लड़ता जिससे उसकी सेना का मनोबल बढ़ जाता।
4. विश्वविजेता बनने की शुरुआत
सिकंदर ने सबसे पहले मकदूनिया के आसपास के राज्यों को जीतना शुरू किया। मकदूनिया के आसपास के राज्यों को जीतने के बाद उसने एशिया माइनर (आधुनिक तुर्की) की तरफ कूच किया।

तुर्की के बाद एक – दो छोटे राज्यों को छोड़कर विशाल फ़ारसी साम्राज्य था। फ़ारसी साम्राज्य मिस्त्र, ईरान से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक फैला था। उल्लेखनीय है कि फारस साम्राज्य सिकंदर के अपने साम्राज्य से कोई 40 गुणा ज्यादा बड़ा था।

फारसी साम्राज्य का राजा शाह दारा था जिसे सिकंदर ने अलग- अलग तीन युद्धों में हराकर उसके साम्राज्य को जीता। परंतु शाह दारा ने सिकंदर से संधि कर ली और अपनी एक पुत्री ऱुखसाना का विवाह उससे कर दिया।

फ़ारसी साम्राज्य जीतने में सिकंदर को करीब 10 साल लग गए। विजय के पश्चात उसने बहुत भव्य जुलूस निकाला और अपने आपको विश्व विजेता कहलाना शुरू कर दिया क्योंकि फ़ारस को जीतकर वह उस तमाम भूमि के 60 प्रतीशत हिस्से को जीत चुका था जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक के लोगों की थी।

भारत तक पहुँचते – पहुँचते उसे शाह दारा के इलावा छोटे – छोटे राज्यों, सूबेदारों और कबीलों से भी युद्ध करना पड़ा जिसमें उसकी जीत हुई।
5. सिकंदर का भारत पर हमला
शायद सिकन्दर इतिहास का पहला राजा था जिसने पूरी दूनिया को जीतने का सपना देखा। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए वह ग्रीस से मिस्त्र, सीरिया, बैक्ट्रिया, ईरान, अफगानिस्तान और वर्तमान पाकिस्तान को जीतता हुआ भारत पहुंचा था।
सिकंदर ने भारत पर 326 ईसा पूर्व में हमला किया था। उस समय भारत छोटे – छोटे राज्यों और गणराज्यों में बंटा हुआ था। राज्यों में राजा शासन करते थे और गणराज्यों के मुखी गणपति होते थे जो प्रजा की इच्छा अनुसार ही फैसले लेते थे।
भारत में सिकंदर का सामना सबसे पहले तक्षशिला के राजकुमार अंभी से हुआ था। अंभी ने शीघ्र ही आत्मसमर्पण कर दिया और सिकंदर को सहायता दी।

सिकंदर अंभी द्वारा भेंट की गई दौलत को देखकर देख दंग रह गया। वह सोच में पड़ गया कि अगर भारत के एक छोटे से राज्य के पास इतनी धन – संपदा है तो पूरे भारत में कितनी होगी ? भारत की धन – संपदा देखकर उसे भारत जीतने की इच्छा ओर बढ़ गई।

इधर तक्षशिला विश्वविद्यालय के एक आचार्य चाणक्य से भारत पर किसी विदेशी का हमला देखा ना गया। चाणक्य ने भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओं से सिकंदर के विरूद्ध लड़ने का आग्रह किया, परंतू सभी राजा अपनी आपसी दुश्मनी की वजह से एक साथ ना आए।

चाणक्य ने सबसे शक्तिशाली राज्य मगध के राजा धनानंद से भी गुहार लगाई, परंतू उसने चाणक्य का अपमान कर महल से निकाल दिया।

इसके बाद चाणक्य ने गणराज्यों से एक होने की अपील की जिसमें वह काफी सफल रहे, इन गणराज्यों ने वापसी के समय सिकंदर को बहुत नुकसान पहुँचाया।
6. हाइडेस्पेस का युद्ध
सिकंदर का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध झेलम नदी के तट पर राजा पुरू या पोरस से हुआ। इस युद्ध को ‘पितस्ता का युद्ध‘ या ‘हाइडेस्पेस का युद्ध‘ कहा जाता है।

महाराजा पुरू सिंध -पंजाब सहित एक बहुत बड़े भू – भाग के स्वामी थे और अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थे।

सिकंदर की सेना को झेहलम नदी पार करके पोरस से युद्ध करना था परंतु वर्षा के मौसम के कारण नदी में बाढ़ आई हुई थी और नदी को पार करना मुश्किल था।

पर रात में किसी तरह यवन सेना नदी के पार पहुँच गई। नदी के उस पार राजा पुरू भी 30,00 पैदल सैनिकों, 4,000 घोड़सवारों, 300 रथों और 200 हाथियों के साथ सिकंदर के स्वागत के लिए तैयार खड़े थे।

सिकंदर ने महाराज पोरस के पास एक संदेश भिजवाया जिसमें पोरस को अधीनता स्वीकार करने को कहा पर पोरस ने ऐसा नहीं किया।

इसके बाद दोनो सेनाओं में भयंकर युद्ध शुरू हुआ। युद्ध के पहले ही दिन सिकंदर की सेना को जमकर टक्कर मिली। इस युद्ध के बाद सिकंदर की सेना का मनोबल टूट गया। सिकंदर ने भी अनुभव किया कि वो पोरस को हरा नहीं सकेगा और लड़ाई जारी रख के अपना ही नुकसान कर लेगा। अंतः उसने पोरस को युद्ध रोकने का प्रस्ताव भेजा जिसे पोरस ने मान लिया।

दोनों पक्षों में संधि हुई जिसके अनुसार पोरस सिकंदर को आगे आने वाले युद्ध अभियानों में सहायता करेगा और बदले में जीते हुए राज्यों पर पोरस शासन करेगा।
7.सिकंदर के सैनिकों का व्यास नदी पार करने से इनकार करना
पोरस से युद्ध के बाद सिकंदर की सेना छोटे हिंदु गणराज्यों से भिड़ी। इसमें कठ गणराज्य के साथ हुई लड़ाई काफी बड़ी थी। कठ जाति के लोग जिन्हें कथेयोई या कथा जाति भी कहा गया है, अपने साहस के लिए सर्वप्रसिद्ध थी। कठों ने एक बार तो यवनों के छक्के छुड़ा दिए थे, लेकिन कम संख्या के कारण उन्होंने हार का मुंह देखना पड़ा।

कठों से युद्ध लड़कर यवन सेना व्यास नदी तक पहुंच ही पाई थी कि उसने आने बढ़ने से मना कर दिया। उन्होंने सुन रखा था कि व्यास नदी के पार नंदवंशी राजा के पास 20 हज़ार घुड़सवार सैनिक, 2 लाख पैदल सैनिक, 2 हज़ार चार घोड़े वाले रथ और लगभग 6 हज़ार हाथी थे। इतनी विशाल सेना के बारे में सुनकर वह घबरा गए। पंजाब में उन्हें जिस विरोध का सामना करना पड़ा उससे उन्हें ज्ञात हो गया होगा कि भविष्य में उन्हें किस प्रकार के युद्ध लड़ने होंगे। पंजाब के छोटे-छोटे गणतन्त्रीय राज्यों की सेनाएँ भी इतने उत्साह से लड़ीं कि सिकंदर की सेना को अहसास हो गया था कि नंदों से टक्कर होने पर उनका क्या हाल होगा।

सिकंदर सारे भारत पर ही विजय पाना चाहता था लेकिन उसे अपने सैनिकों की मर्जी के कारण व्यास नदी से ही वापस लौट जाना पड़ा। वापिस जाते हुए उसे मालव और क्षुद्रक आदि कई वीर हिंदु गणराज्यों से संगठित विरोध का सामना करना पड़ा क्योंकि सिकंदर की योजना जाते – जाते इनके क्षेत्रों को जीतने की थी।

माना जाता है कि इन सभी गणराज्यों को एक साथ लाने में आचार्य चाणक्य का बहुत बड़ा योगदान था। इन सभी गणराज्यों ने सिकंदर को काफी क्षति पहुँचाई और उसकी सेना के हौसले पस्त कर दिए।
8. सिकंदर की मृत्यु
जब सिकंदर की सेना ने व्यास नदी पार करने से इंकार कर देने से उसके उसके विश्व विजय का सपना टूट गया।वह अत्याधिक शराब पीने लगा और उदास रहने लगा।

सिकंदर भारत में लगभग 19 महीने रहा। जब वह बेबीलोन (ईरान) पहुँचा तो 323 ईसवी पूर्व में 33 साल की उम्र में उसकी मौत हो गई। उसकी मौत का कारण मलेरिया बताया जाता है।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सिकंदर की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई जबकि अन्य का मानना है कि उसकी जश्न के दौरान गुप्त तरीके से हत्या कर दी गई थी। शेप गत 10 वर्षों से जहरीले सबूत के बारे में अनुसंधान कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आर्सेनिक और स्ट्रिकनीन के जहर के सिद्धांत हास्यास्पद हैं। अध्ययन के नतीजे ‘क्लिनिकल टॉक्सिकोलॉजी’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। 

सिकंदर बोला कि 'मेरी पहली इच्छा है कि मेरा इलाज करने वाला हकीम ही मेरे ताबूत को खींचकर कब्र तक ले जाएगा।' 'दूसरी ये कि जब मेरा ताबूत कब्र तक ले जाया जाए तो उस रास्ते में मेरे इकट्ठे किए हुए खजाने में से सोने-चांदी बहुमूल्य पत्थर बिखेरे जाएं' और मेरी तीसरी और आखिरी इच्छा है कि 'मेरे दोनों हाथ ताबूत में से बाहर दिखाई देने चाहिए
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